करनाल : हरियाणा के करनाल में विजिलेंस टीम ने 5 लाख की रिश्वत लेते पकड़े DTP विक्रम सिंह को आज तीसरी बार कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने DTP को 5 दिन का पुलिस रिमांड सुनाया है। पहले रिमांड के दौरान DTP से कैश में खरीदी गई गाड़ी को बरामद किया है। विजिलेंस ने 11 मार्च को DTP को 5 लाख रुपए की रिश्वत के साथ गिरफ्तार किया था। उसके ड्राइवर को 5 हजार रुपए के साथ पकड़ा था।
12 मार्च को दोनों कोर्ट में पेश किए। कोर्ट ने विजिलेंस की मांग पर 3 दिन का रिमांड दिया। रिमांड के दौरान आरोपी DTP से 78 लाख 50 हजार रुपए बरामद हुए। साथ कुछ कागजात, कैश में खरीदी दो गाड़ियां बताई। साथ ही बताया कि 78.50 लाख में से 14.50 लाख रुपए तहसीलदार राज बक्श ने एनओसी लेने के नाम पर दिए हैं।
14 मार्च को तहसीलदार राज बक्श को हिरासत में लेकर पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। 15 मार्च को DTP विक्रम सिंह, तहसीलदार राज बक्श व DTP के ड्राइवर बलबीर को कोई में पेश किया गया। कोर्ट ने बलबीर को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। DTP को 3 और तहसीलदार को 1 दिन का रिमांड दिया।
तहसीलदार से मिली कई जगहों पर प्रॉपर्टी
1 दिन के रिमांड के दौरान सामने आया कि तहसीलदार राज बक्श के पास 2 मकान हैं। इनमें से 1 मकान राज बक्श की बेटी के नाम है और दूसरा मकान तहसीलदार की पत्नी के नाम पर है। इसके अलावा 40 लाख रुपए नकदी हैं। 80 हजार रुपए मिले हैं। इनके दो मकान रतिया हैं।
जिनके कागजात भी रतिया में ही हैं। इसके अलावा फरीदाबाद में जमीन है। फरीदाबाद की जमीन के कागजात तहसीलदार के फ्रेंड के पास हैं। सामने आया कि तहसीलदार राज बक्श क्लर्क के माध्यम से पैसे को लेता था। एक जगह जेड-ब्लैक के नाम से तहसीलदार के पास है।
तहसील में 15 डीड राइटर व 3 जेई के नाम बताए हैं, जो पैसे देकर रजिस्ट्री करवाने में दलाल का काम करते हैं। 16 मार्च को इस दलील पर कोर्ट ने 21 मार्च तक 5 दिन का रिमांड दिया। वहीं 18 मार्च DTP का दूसरी बार मिला 3 दिन का रिमांड पूरा हो रहा है। जिसे आज कोर्ट में पेश किया गया। DTP को सस्पेंड भी किया जा चुका है।
DTP-तहसीलदार मिलकर करते थे काम
जांच में सामने आया है कि तहसीलदार राज बक्श व डीटीपी विक्रम सिंह मिलकर अवैध कॉलोनियों को सीएम सिटी करनाल में बसाने का गिरोह चला रहे थे। तहसीलदार और डीटीपी अवैध कॉलोनियों की रजिस्ट्री और एनओसी के लिए रिश्वत लेते थे। दोनों के पास भ्रष्टाचार से संबंधित कोई भी केस आता तो डील कर लेते थे।
अवैध कॉलोनियां विकसित कराने में दोनों अधिकारियों का अहम रोल रहता था। तहसीलदार कॉलोनाइजर्स के साथ मिलकर रजिस्ट्री की जिम्मेदारी लेता था। डीटीपी रजिस्ट्री के लिए एनओसी जारी करता था। दोनों अधिकारी मुंह मांगी रिश्वत लेकर पैसा इकट्ठा कर रहे थे। सूत्रों के अनुसार, तहसीलदार 60% और डीटीपी 40% हिस्सेदारी पर काम करते थे।