भोपाल. मध्यप्रदेश सहित देशभर से सैंकड़ों स्टूडेंट डॉक्टर बनने के लिए यूक्रेन जाते हैं, आपको यह सुनकर तो अच्छा लगता होगा कि हमारे देश की अपेक्षा यूक्रेन में स्टूडेंट कम पैसे में ही डॉक्टर बन जाते हैं, लेकिन क्या आपको इस सच्चाई के बारे में भी मालूम है कि वहां से डॉक्टर बनकर आने के बाद भी इंडिया में उनकी कोई अहमियत नहीं रह जाती है, जब तक की वे यहां पर होने वाले एक टेस्ट को पास नहीं कर लेते हैं। आपको यह सुनकर हैरानी होगी कि यूक्रेन सहित अन्य देशों से डॉक्टर बनकर आनेवाले हजारों स्टूडेंट में से महज चंद स्टूडेंट ही डॉक्टर बन पाते हैं, बाकी के स्टूडेंट एमबीबीएस करने के बाद भी इंडिया में कम्पाउंडर या किसी डॉक्टर के असिस्टेंट का काम करने को मजबूर हैं।
समीर सोलंकी ने किर्गिस्तान से एमबीबीएस किया। लगातार स्क्रीनिंग टेस्ट दे रहे हैं। पास नहीं हुए तो अब बीएचएमएस कर रहे हैं। साथ ही एक अस्पताल में बतौर असिस्टेंट सेवाएं भी दे रहे हैं।
जफर खान ने 2013 में उजबेकिस्तान से एमबीबीएस किया। कई बार स्क्रीनिंग टेस्ट दिया, पर पास नहीं हो सके। अब एक निजीअस्पताल में मैनेजमेंट संभाल रहे हैं।
संस्थाएं यूं लेती हैं ठेका 20 लाख रुपए-कोर्स फीस 02 लाख रुपए- पासपोर्ट वीजा और अन्य दस्तावेज 15 लाख रुपए- रहना खाना 05 लाख रुपए: अन्य खर्च
भारत में इन देशों की डिग्री मान्य नहीं है। दोनों देशों के पाठ्यक्रम में अंतर होने से अधिकतर छात्र एफ एमजी टेस्ट में फेल होते हैं।
विदेश और हमारे देश में भौगोलिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण के आधार पर कई असमानताएं हैं। यूक्रेन और अन्य देश ठंडे स्थान हैं, हमारे देश में गर्मी ज्यादा पड़ती है। वहां और यहां की बीमारियों से लेकर दवाओं और इलाज के तरीकों में अंतर है। ऐसे में छात्र एमबीबीएस होते हुए भी यहां की परीक्षा पास नहीं कर पाते। -डॉ. सुबोध मिश्रा, पूर्व अध्यक्ष मध्यप्रदेश मेडिकल काउंसिल