युद्ध की विभीषिका: विमान उपकरण, जहाज से लेकर जहां बनते थे ट्रैक्टर, वे शहर अब हो गए खंडहर

 रूस ने यूक्रेन के जिन शहरों पर हमला बोला है वो यूक्रेन की रीढ़ हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निर्देश पर रूसी सेना जैसे इन शहरों पर ताबड़तोड़ हमले कर रही है उससे स्पष्ट है कि रूस यूक्रेन के आर्थिक और शैक्षणिक गलियारे को ध्वस्त कर देना चाहता है। रूस द्वारा अबतक जिन प्रमुख शहरों पर हमला बोला गया है उनकी यूक्रेन की अर्थव्यवस्था और शिक्षा के क्षेत्र में क्या भूमिका है। इसी की पड़ताल करती एक रिपोर्ट…।

कीव: खाद्य पदार्थों से लेकर जहाजों के उपकरण बनते हैं

कीव बिजली, गैस और जलापूर्ति के क्षेत्र में सबसे आगे है। यूक्रेन के उद्योगों में इस्तेमाल होने वाली बिजली, गैस और पानी की 26 फीसदी आपूर्ति यहीं से होती है। यहां खाद्य और तंबाकू उत्पादों का भी बड़े पैमाने पर उत्पदन होता है। बड़े स्तर पर कागज से बने उत्पाद भी तैयार होते हैं। नौसेना और वायुसेना से जुड़े उपकरणों का भी बड़े पैमाने पर निर्माण होता है।

मारियुपोल: स्टील मिल और केमिकल प्लांट का गढ़

स्टील मिल, केमिकल प्लांट और भारी उद्योग से जुड़ी यहां 56 औद्योगिक ईकाईया हैं। इस शहर की विशेषता ये है कि ये रेलमार्ग से लेकर समुद्र मार्ग से जुड़ा है। यूक्रेन के बजट में इस शहर की अहम भूमिका होती है। बड़े पैमाने पर उद्योग धंधों के कारण यहां औसतन 98 फीसदी लोगों के पास उत्पादन क्षेत्र से जुड़ा कोई न कोई रोजगार होता है।

शिक्षा: चार लाख की आबादी वाले शहर में ग्यारह उच्च शिक्षण संस्थान हैं जहां करीब 6300 सीटों पर पढ़ाई होती है। मरीन ट्रांसपोर्ट, स्टील और केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई अहम है।

 

खारकीव: विमान से लेकर ट्रैक्टर तक यहां बनता है

विमान से लेकर ट्रैक्टर और अन्य भारी उपकरण बनाने की 270 कंपनियां हैं। दुनियाभर में बनने वाले भारी उपकरणों का 17 फीसदी हिस्सा यहीं बनता है। यहां टरबाइन, इलेक्ट्रिक इंजन, टॉवर क्रेन, रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ मेडिकल उपकरणों का निर्माण होता है। सॉफ्टवेयर से संचालित मशीनों का निर्माण भी बड़े स्तर पर होता है।

 

शिक्षा: दस विश्वविद्यालय, आठ शिक्षण संस्थान और दस प्राइवेट उच्च शिक्षण संस्थान हैं जहां डेढ़ लाख छात्र पढ़ते हैं। दुनिया के 50 देशों के करीब तीन हजार छात्र विशेष प्रशिक्षण लेते हैं।

खेरसॉन: जहाज निर्माण के क्षेत्र में अव्वल

ब्लैक सी और दिनेपर नदी से जुड़ा ये शहर जहाज निर्माण के क्षेत्र में अव्वल है। करीब तीन लाख की आबादी वाले इस शहर में करीब 200 आर्थिक ईकाईयां हैं। मशीन इंजीनियरिंग से लेकर खाद्य निर्माण, केमिकल उत्पादन, हल्के उद्योग अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं। यहां बड़े पैमाने पर बिजली का भी उत्पादन किया जाता है।शिक्षा: उच्च शिक्षा मुहैया कराने वाले करीब 15 संस्थान हैं। जिसमें प्रमुख रूप से खेरसॉन कृषि विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ बिजनेस एंड लॉ शामिल हैं।

ओडेसा: तेल रिफाइनरी के क्षेत्र में आगे

तेल रिफाइनरी के क्षेत्र में ये शहर सबसे आगे है। इसके अलावा यहां संचालित खाद्य सामग्री, लकड़ी और केमिकल उद्योगों से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को बड़ी आय होती है। यहां सात किलोमीटर लंबा एक बाजार है जिसे पूर्वी यूरोप का सबसे बड़ा बाजार माना जाता है। यहां पर कुल छह हजार दुकानदार हैं जहां हर दिन औसतन डेढ़ लाख लोग खरीदारी करते हैं।

शिक्षा: ओडेसा नेशनल इकोनॉमिक यूनिवर्सिटी यहां की सबसे पुरानी पहचान है जिसकी स्थापना वर्ष 1921 में हुई थी। मैरीटाइम एकेडमी से हर साल एक हजार अधिकारी दुनिया को मिलते हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध से हिल जाएगी दुनिया की अर्थव्यवस्था, नुकसान की भरपाई फिलहाल असंभव
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जिविया का कहना है कि युद्ध से यूक्रेन को हुई क्षति की भरपाई फिलहाल असंभव है। यूक्रेन में लोगों के साथ आर्थिक ढांचे को भारी क्षति हुई है। लाखों लोग अपना घर और रोजगार छोड़कर चले गए हैं। उद्योग धंधे बंद पड़े हैं जिनको युद्ध के बाद उबरने में काफी लंबा वक्त लगेगा।

विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मालपास का कहना है कि युद्ध से तबाह हो रही यूक्रेन की अर्थव्यवस्था दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला देगी। दुनिया के कई देश यूक्रेन पर निर्भर थे जो आने वाले समय में कई तरह के संकट से जूझेंगे। यूक्रेन से जुड़ी नौकरियों की कड़ी टूट चुकी है। तेल की कीमतों में इजाफा होने से दुनिया के गरीब देश सबसे अधिक प्रभावित होंगे।

यूक्रेन को पंगु बनाना चाहता है रूस

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि रूस जिस तरह से यूक्रेन के प्रमुख शहरों पर हमला बोल रहा है उस अनुसार वो यूक्रेन को अपना पंगु बनाना चाहता है। रूस ने फिलहाल जिन शहरों पर हमला बोला है वो उसकी आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। रूसी कार्रवाई में ये शहर लगभग बिखर चुके हैं। ऐसे में इन शहरों को युद्ध के बाद खड़े होने में लंबा वक्त लग सकता है।

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