रूस-यूक्रेन युद्ध का असर: भारत में बढ़ सकती है महंगाई, इससे निपटने को मोदी सरकार की क्या है तैयारी

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यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध ने वैश्विक जिंस बाजारों को अस्त-व्यस्त कर दिया है। इस युद्ध के कारण खेती की लागत और खाद्य पदार्थों की कीमतों में इजाफा होने की उम्मीद है। वैश्विक बाजार का यही हाल रहा तो भारत में खाद्य मुद्रास्फीति जल्द ही दो अंकों में प्रवेश कर सकती है।

काला सागर क्षेत्र, जो व्यापार का केंद्र है और युद्ध की वजह से यहां से सभी व्यापार बंद हैं। इस वजह से कच्चे तेल, गेहूं, मक्का, खाना पकाने के तेल और उर्वरकों की कीमतें नई ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। सोमवार को, कच्चे तेल की कीमतें 139 डॉलर प्रति बैरल के उच्च स्तर पर पहुंच गई थीं, जो 2008 के बाद से सबसे अधिक है।

 वैश्विक गेहूं की कीमतों में साल-दर-साल 91% की वृद्धि हुई है, जबकि मकई की कीमतों में साल-दर-साल 33% की वृद्धि हुई है। चूंकि भारत खाद्य तेल और उर्वरकों के आयात पर पूरी तरह से निर्भर है, इसलिए उपभोक्ताओं को इनकी कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। इसके अलावा, खरीफ बुवाई के मौसम से पहले देश में उर्वरकों की कमी से ग्रामीण क्षेत्रों में अशांति पैदा हो सकती है।

2 – सरकारी अनाज का स्टॉक उपभोक्ताओं के हित में

फरवरी के मध्य तक, चावल और गेहूं का केंद्रीय भंडार 54 मिलियन टन था, जो 30 मिलियन टन से अधिक है और यह देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए आवश्यकता से अधिक था। इस महीने के अंत में गेहूं की फसल बाजार में आने के साथ ही सरकार कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए अपने गेहूं के स्टॉक को समाप्त कर सकती है।हालांकि, अगर वैश्विक कीमतों में और बढ़ोतरी होती है और यूक्रेन में संघर्ष के हालात बने रहते हैं, तो भारत अधिक गेहूं का निर्यात कर सकता है, जिससे खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। खाद्य तेल और ईंधन की कीमतों में बढ़ोत्तरी के साथ भारत में खाद्य मुद्रास्फीति दो अंकों के उच्च स्तर को छू सकती है।

3 – मूल्य वृद्धि का किसानों पर क्या असर?

किसान अब सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुकाबले प्रीमियम कीमतों की उम्मीद कर सकते हैं। थोक गेहूं की कीमतें अब एमएसपी से अधिक हैं, जबकि सरसों की कीमतें 7,000 प्रति क्विंटल पर, जो एमएसपी से पहले ही 40% अधिक हैं और जल्द ही 10,000 अंक को पार कर सकती हैं। तेज कीमतों की वजह से लागत में इजाफा होगा।

4 – कच्चे तेल की ऊंची कीमतों पर प्रभाव?

ऐतिहासिक आंकड़े कच्चे तेल और खाद्य कीमतों में वृद्धि के बीच घनिष्ठ संबंध दर्शाते हैं। कच्चे तेल की कीमतें खाद्य उत्पादन से भी अधिक खाद्य कीमतों को प्रभावित करती हैं। क्रूड की कीमतें 120-130 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में हैं। यहां तक कि अगर यह कीमतें 100-110 डॉलर के स्तर पर भी रुक जाती हैं, तो यह उर्वरक की कीमतों और शिपिंग लागत को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेंगी। कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से खाद्य फसलों के उत्पादन पर असर होता है, जिससे फसल की कीमतें बढ़ जाती हैं। भारत ने नवंबर के बाद से ईंधन की कीमतों में कोई वृद्धि नहीं की है, लेकिन उम्मीद है जल्द ही कीमतों में इजाफा हो सकता है।

5 – सरकार क्या उपाय कर सकती है?

अपने अनाज के स्टॉक को समाप्त करने के अलावा, सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए निर्यात को प्रतिबंधित कर सकती है। जहां तक खाद्य तेल का सवाल है, आयात शुल्क पहले ही काफी कम कर दिया गया है। खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति जनवरी में बढ़कर 13 महीने के उच्च स्तर 5.4% पर पहुंच गई है।इसके और बढ़ने की संभावना है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भुखमरी के हालात और खराब ना हों, सरकार पीडीएस का विस्तार कर सकती है और कई और परिवारों को इसमें जोड़ सकती है। उर्वरक आयात के मोर्चे पर सरकार को कनाडा, इजराइल और चीन से आपूर्ति करनी पड़ सकती है। 

 

घरेलू बजट पर असर

यदि ऐसी ही स्थिति बनी रही तो हालात बिगड़ सकते हैं, ऐसे में भारत अधिक गेहूं निर्यात कर सकता है, जिससे खुदरा बिक्री में तेजी आएगी।

भारत में खुदरा खाद्य कीमतों में वृद्धि (प्रतिशत में)
(7 मार्च 2020 और 2022 के बीच)

  • गेहूं का आटा – 6.7
  • चावल – 9.1
  • चीनी – 5.1
  • सरसों का तेल – 62.4
  • दूध – 13.3
  • अरहर की दाल – 19.5

स्रोत : उपभोक्ता मंत्रालय

वैश्विक कीमतों में वृद्धि (प्रतिशत में, साल दर साल)
(7/8 मार्च को)

  • गेहूं – 90.9
  • सोयाबीन – 18.2
  • पाम ओई – 68.6
  • चीनी – 18.9
  • मकई – 32.8
  • चावल – 20.9

स्रोत: ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स डाटाबेस