दिव्यांका ने दौड़कर छोटी उम्र में हासिल की बड़ी उपलब्धियां

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 यमुनानगर :

दिव्यांका चौधरी उम्र छोटी है, लेकिन उपलब्धियां बहुत बड़ी हैं। दौड़ती है तो हवा से बातें करती है। 22 वर्ष की उम्र में एक के एक मेडल जीतकर प्रदेश नाम रोशन कर रही है। दिव्यांका पंजाब विश्वविद्यालय पंजाब से समाज शास्त्र में एमए कर रही हैं । उपलब्धियों के आधार पर चयन व‌र्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स के लिए भारतीय टीम में हुआ है। जोकि 26 जून से सात जुलाई तक चीन के चेंगड़ू में होनी है। हालांकि दिव्यांका मूल रूप से सहारनपुर के गांव झबीरन से है, लेकिन वर्ष-2006-07 में हरियाणा स्पोर्ट विभाग में कार्यरत सीनियर एथलेक्टिस कोच प्रवीण कुमार ने इनको गोद लिया था। सुविधाओं के अभाव प्रतिभा दबकर न रह जाए, इसलिए प्रवीण कुमार ने दिव्यांका को गोद लेने का निर्णय लिया था।

ये उपलब्धियां हैं दिव्यांका की :

गत वर्ष दिल्ली में आयोजित एयरटेल मैराथन में 21 किलोमीटर की दौड़ एक घंटा 27 सेकेंड में पूरी की। इसके साथ ही हैदराबाद में हुई 42 किलोमीटर की मैराथन में प्रतिभागी बनी। तीन घंटे दौड़कर तीसरे स्थान पर रही और कैश अवार्ड जीता। इसके बाद फिर दिल्ली मैराथन में भाग लिया। वहां 42 किलोमीटर की दौड़ तीन घंटे 16 सेकेंड में पूरी की और दूसरे स्थान पर रही। गुरुग्राम में हुई मैराथन में 42 किलोमीटर दौड़ में प्रथम स्थान पर रही। यह दौड़ तीन घंटे एक सेकेंड में पूरी की। इसके बाद आल इंडिया क्रास कंट्री मथुरा में 10 किलोमीटर की दौड़ हुई। दिव्यांका इसमें पंजाब टीम की तरफ से खेली थी, क्योंकि पंजाब विश्वविद्यालय की छात्रा है। इस प्रतियोगिता में तीसरे स्थान पर रही। यमुनानगर में रोड सेफ्टी दौड़ में प्रथम स्थान पर रही। इनको प्रशासन की ओर से सम्मानित किया गया। वर्ष 2017 में आल इंडिया क्रास कंट्री 10 किमी दौड़ भिलाई में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। आल इंडिया यूनिवर्सिटी मंगलोर 21 किमी दौड़ में तीसरे स्थान पर रही। वर्ष-2021 में ढाका में आयोजित इंटरनेशनल चैंपियनशिप में ब्रांज मेडल हासिल किया।

सरकार करे सहयोग तो छू ले बुलंदियां :

दिव्यांका जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर की दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रदेश का नाम रोशन कर चुकी हैं। दिव्यांका के पिता व कोच प्रवीण कुमार का कहना है कि यदि सरकार या किसी सामाजिक संस्था की ओर से दिव्यांका को स्पोंसरशिप मिले तो और भी आगे बढ़ सकती है। दिव्यांका ने वर्ष 2012 से खेलना शुरू किया था। छह से सात घंटे दौड़ का अभ्यास करती हैं। खेलों के साथ पढ़ाई भी अव्वल रहती हैं। प्रवीण कुमार दिव्यांका के पिता होने के साथ-साथ कोच की भूमिका भी बेहतरी से निभा रहे हैं। दिव्यांका के मुताबिक उनके मार्गदर्शन में ही यह उपलब्धियां हासिल की है।

Edited By: Jagran