बिलासपुर : हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटा सिखों की धरोहर पहली पातशाही राजधानी के नाम से प्रसिद्ध ऐतिहासिक लोहगड़ साहिब सरकार की अनदेखी झेल रहा है। यहां पहुंचने के लिए आज तक पक्के रास्ते की व्यवस्था नहीं हो पाई। जबकि दूर-दराज से श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचते हैं। विशेष अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। लोहगढ़ गुरु घर के सेवक बाबा रणजीत सिंह व गुरु घरों की सेवा में अग्रणी परमपाल सिंह ने बताया कि लोहगड़ साहिब का इतिहास वर्षों पुराना है। जयमल सिंह बाबा ने 1710 में यहां पर टकसाल बनाई। इस टकसाल में सिक्के बनाए जाते थे। जिनका प्रमाण आज तक मौजूद है। यहां पर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन गांव भगवानपुर से लेकर लोहगड़ तक का रास्ता कच्चा है। नदी से होकर जाना पड़ता है। वाहन तो दूर पैदल गुजरना भी जोखिम भरा है। रास्ता बनाए जाने की मांग कई बार प्रशासन के समक्ष रखी जा चुकी है, लेकिन अब तक केवल आश्वासन मिल रहे हैं।
नजदीक है मंदिर
यह है स्थल का इतिहास
परमपाल ने बताया कि बहादुर शाह ने तीन महीने इसी लोहगड़ साहिब में राजा जरनैल को घेर कर रखा था। जहांगीर के सीपहेसलार मुखलीस खान को गुरु गोविद सिंह ने मार गिराया। दसवीं पातशाही बगानी साहिब को फतेह करने के बाद आठ दिन लोहगड़ साहिब में आकर ठहरे थे। उन्होंने बताया कि यहां पर मुसलमानों का शासन था। लोगों पर बहुत अत्याचार होते थे। सिखों को न बाल रखने और न पगड़ी बांधने की इजाजत थी। बंदा बहादुर ने 52 मोर्चे बनाकर करीब 2500 सिपाहियों के साथ तीन माह तक लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।
ऐसे बनी सिखों की पहली राजधानी
लोहगढ़ साहिब साढौरा और नाहन के बीच पड़ता है। गर्मी के मौसम में शाहजहां यहां पर आते थे। यहां पर उनकी मनमानी चलती थी। गुरु गोबिद सिंह ने उसे मार गिराया और मुखलीस से लोहगड़ नाम दिया। सिखों को केश और पगड़ी बांधने की इज्जत दी। तभी से यह सिखों की पहली राजधानी बनी। यहीं से सिखों को हुकमनामे और फरमान जारी होने लगे। फरमान जारी किया कोई भी भूखा नही रहेगा। जमीदारी सिस्टम भी बंदा सिंह बहादुर ने खत्म कर दिया। महाराज रणजीत सिंह ने किसानों को उनकी जमीनों का हक दिलवाया।