आज से ठीक दो माह पहले 6 जुलाई को शहर जगाधरी थाना की बिल्डिंग से लगती जमीन पर साइबर थाना खोल दिया गया। इसके पीछे सोच थी कि साइबर अपराध बढ़ रहा है, केस ट्रेस नहीं हो पा रहे और साइबर अपराध करने वालों को पकड़ने के लिए साइबर थाना बनेगा तो अलग स्टाफ होगा और अपराधी जल्द पकड़े जाएंगे लेकिन दो माह में ऐसा नहीं हो पाया। दो माह में सात केस दर्ज हुए। एक में भी न तो आरोपी पकड़ा गया और न ही शिकायत देने वाले को हुए नुकसान की भरपाई हो पाई।
अपराधी कब पकड़े जाएंगे, इस सवाल पर पुलिस का कहना है कि जांच कर रहे हैं। जल्द पकड़े जाएंगे। साइबर अपराधी लगातार लोगों को शिकार बना रहे हैं। हालांकि पूरे जिले में होने वाली साइबर ठगी के केस, साइबर थाने में दर्ज नहीं हो रहे। अन्य थानों में भी दर्ज किए जा रहे हैं। वहां पर भी इन केसों की फाइलें धूल फांक रही हैं। साइबर ठगी का हर तीसरे या चौथे दिन कोई न कोई केस सामने आ रहा है। पुलिस लोगों को जागरूक भी कर रही है, लेकिन न तो जागरूकता का असर दिख रहा और न ही जो केस दर्ज हुए हैं उनमें अपराधी पकड़े जा रहे।
एक्सपर्ट स्टाफ हो तो साइबर अपराधी आ सकते हैं पकड़ में
थाना बना दिया गया लेकिन उसका जिम्मा दूसरे थाने के इंचार्ज को दिया गया। थानों में पहले से वर्कलोड बहुत ज्यादा है। एक एसएचओ दो थानों की जिम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभा सकता। इसके साथ ही पुलिस के पास एक्सपर्ट स्टाफ भी नहीं है। कहा जा रहा है कि थाने में स्वतंत्र थाना प्रभारी और एक्सपर्ट स्टाफ के बाद ही केसोंं की जांंच तेज हो सकती है और अपराधी पकड़ में आ सकते हैं।
कब-कब केस दर्ज हुए| साइबर थाने में पहला केस सात जुलाई को दर्ज हुआ। इसके बाद 11 जुलाई, 19 जुलाई, 23, 25 जुलाई, चार अगस्त, 27 अगस्त को केस दर्ज हुआ। जो केस दर्ज हुए हैं, उसमें जज की फोटो लगे नंबर से कोर्ट कर्मचारियों से पैसे मांगे गए। बिजली बिल अपडेट करने के नाम पैसे ठग लिए। खाना ऑर्डर करने के नाम प्रोफेसर से ठगी हुई। बैंक कर्मी तक को ठगने का मामला दर्ज है लेकिन किसी में भी अपराधी नहीं पकड़े गए।
थाना खुलने से पहले यह स्थिति थी
साइबर केसों ट्रेस करने में पहले भी पुलिस काे कम ही सफलता मिलती थी। अकाउंट अपडेट करने, ऑनलाइन जॉब दिलाने, बिल अपडेट करने, एटीएम कार्ड की डिटेल लेकर ठगी करने, जेब में एटीएम कार्ड होने के बाद खाते से पैसे कटने, मोबाइल नंबर बंद होने जैसा झांसा देकर ठगी करने जैसे मामलों में से पुलिस चंद केसों को ही ट्रेस कर पाती थी। एक से दो प्रतिशत केस ही ट्रेस होते थे। अन्य ज्यादातर केसों की फाइलें थानों में पड़ी धूल फांकती रहती थी। अब साइबर थाना खुलने के बाद भी ऐसा ही हो रहा है।
जांच चल रही, रिपोर्ट में समय लगता है
साइबर थाने का अतिरिक्त चार्ज संभाल रहे शहर यमुनानगर थाना इंचार्ज नसीब सिंह ने बताया कि साइबर केसों में गूगल, फेसबुक समेत ऑनलाइन डाटा लेना होता है। इसमें समय लगता है। उनका कहना है कि जहां तक थाने में तैनात स्टाफ की बात है, थाने में पर्याप्त स्टाफ है। स्टाफ की कमी जैसे कोई बात नहीं है।