कपालमोचन में रविवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। देर शाम तक पंजाब व अन्य प्रदेशों से श्रद्धालुओं का वाहनों से आना जारी रहा। उन्होंने पवित्र सरोवरों में स्नान कर मोक्ष की कामना की। मंगलवार कार्तिक पूर्णिमा तक यहां पर 7 से 8 लाख श्रद्धालु पहुंचने की संभावना है। पंजभीखी के तीसरे दिन तक यहां के पवित्र सरोवरों में 3 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने स्नान किया। श्रद्धालु सबसे पहले ऋणमोचन सरोवर में स्नान करने पहुंचते हैं।
मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। यहां महाभारत के युद्ध के पश्चात पाण्डवों ने श्रीकृष्ण जी के साथ, भगवान श्रीराम ने रावण वध के बाद स्नान कर ऋण से मुक्ति पाई। उसके पश्चात श्रद्धालु कपालमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। यहां के बारे ग्रंथों में वर्णित है कि सतयुग में सोमसर सरोवर में स्नान करने से गऊबच्छा को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी। कलयुग में भगवान शिव के यहां स्नान करने से उनकी ब्रह्मा जी का सिर काटने से लगी कपाली दूर हुई थी। इसके बाद श्रद्धालु सूरजकुंड सरोवर में स्नान करते हैं।
यहां की मान्यता है कि माता कुंती ने यहां तपस्या का कर्ण जैसा योद्धा पुत्र प्राप्त किया था। यहां पुत्र व अन्य कामना की पूर्ति के लिए लोग सरोवर में स्नान करते हैं। सरोवर किनारे बेरी के पेड़ पर धागा बांध कर मन्नतें मांगते हैं। बरगद के पेड़ पर सूत दान करते हैं। इसके साथ वे यहां के पवित्र मंदिरों में पूजा अर्चना कर दान पुण्य करते हैं। श्रद्धालु सभी जगह दीपदान करते हैं।
वहीं बड़ी संख्या में श्रद्धालु ऐतिहासिक गुरुद्वारा कपालमोचन में शीश नवाते हैं। यहां पहले गुरु नानक देव जी व दशम गुरु गोबिंद सिंह जी के आने की परंपरा का सिख समाज निर्वाह कर रहा है। वक्त के साथ परंपराएं भी बदल रही हैं।
एक समय में यहां पंजाब व अन्य राज्यों से आने वाले श्रद्धालु 5 दिन तक ठहरते थे। लेकिन आवाजाही के सुलभ साधन होने के चलते अब श्रद्धालु स्नानादि से निवृत्त होकर उसी दिन अपने घरों को लौट जाते हैं।