बड़े अरमान थे। लंबे संघर्ष व काम के बाद पार्टी का टिकट मिलेगा। पर गठबंधन की सियासत ने खेल बिगाड़ दिया। हालात कुछ ऐसे बने कि पहले के दावेदार नकार दिए गए और बाहर से आए लोग प्रत्याशी बन गए। कुछ ऐसे जुगाड़ लगाने में कामयाब रहे कि वह रातों-रात प्रत्याशी हो गए। ऐसे में टिकट कटने से क्षुब्ध नेता तीखे तेवर में दिखाई दे रहे हैं। कुछ तो कह रहे हैं कि दूसरे को टिकट देने के पार्टी नेतृत्व के फैसले को वे गलत साबित कर देंगे।
बात इतनी भर नहीं है। सबक सिखाने के लिए बगावत का झंडा उठाए ऐसे लोग अब या छोटे दलों के जरिए मैदान में कूद गए हैं या फिर निर्दलीय ही ताल ठोंक रहे हैं। कुछ ने ऐन वक्त पर बसपा से भी टिकट का इंतजाम कर लिया। अब सवाल यह है कि यह विद्रोही खुद चुनाव जीतेंगे या मूल दल के प्रत्याशी का खेल बिगाड़ देंगे। यही चिंता उन लोगों की है जिन पर नेतृत्व ने भरोसा जता कर मैदान में उतारा है।
मुरादाबाद से एक वर्तमान विधायक का टिकट कटा तो उसने पहले तो आगे पार्टी आलाकमान के आगे नाराजगी जताई। नेतृत्व ने उन्हें पार्टी के लिए फिलहाल त्याग करने की सलाह दी। साथ ही आगे अच्छी जगह एडजस्ट करने का भरोसा दिया। पर वह नहीं माने। अब वह बसपा से मैदान में हैं। वह दावा करते हैं कि जीत कर आएंगे और शीर्ष नेतृत्व से कहेंगे कि आपने टिकट नहीं दिया फिर भी हम जीत कर आ गए। ऐसा ही क्षोभ उन तमाम विधायकों में है जो टिकट पक्का करने के लिए काफी समय से लगे थे। अब तीन चरणों का चुनाव निपट गया। बाकी के चरणों में 231 सीटों में तमाम जगह बागी कहीं मजबूती से लड़ रहे हैं
भाजपा के बागी बन सकते हैं मुसीबत
भाजपा के तेजतर्रार विधायक सुरेंद्र सिंह को जब बैरिया से टिकट नहीं मिला तो वह बागी तेवर दिखाते हुए एक छोटे से दल के जरिए मैदान में उतर गए। इसी बैरिया से उनके सामने भाजपा प्रत्याशी व राज्यमंत्री विधायक आनंद शुक्ला लड़ रहे हैं। अब दो विधायक आमने-सामने हैं। गोंडा के कैसरगंज से भाजपा ने विनोद कुमार शुक्ला का टिकट काट दिया और वह बसपा प्रत्याशी बन गए। भाजपा ने प्रयागराज की बारा सीट सहयोगी अपना दल सोनेलाल के हवाले कर दी। इससे भाजपा के विधायक अजय कुमार का टिकट कट गया तो वह ऐन मौके पर हाथी पर सवार होकर पूरी ताकत से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा के बरहज से विधायक सुरेश तिवारी ने भी टिकट कटने पर बसपा का दामन थाम कर अपनी सीट बदल रुद्रपुर से मैदान में आ डटे हैं। वह पहले भी बसपा से चुनाव जीत चुके हैं।
बागी सपा गठबंधन प्रत्याशियों के लिए चुनौती बने
शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा सपा के साथ है। प्रसपा की पुरानी नेता व अखिलेश सरकार में मंत्री रह चुकी शादाब फातिमा जहूराबाद या गाजीपुर सदर से टिकट चाह रही थीं। जब शिवपाल यादव केवल अपना टिकट ही सपा से पक्का करा पाए तो उन्होंने निराशा में पार्टी छोड़ दी और बसपा से प्रत्याशी हो गईं। यहां जहूराबाद से सपा गठबंधन में सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर लड़ रहे हैं। यहां भाजपा, गठबंधन व बसपा तीनों के उम्मीदवार पहले भी आपस में लड़ चुके हैं और तीनों कम से कम एक एक बार यहां से जीत चुके हैं। शिवपाल यादव के एक और सहयोगी शारदा प्रताप शुक्ला भी लखनऊ की सरोजनीनगर से सपा से टिकट चाह रहे थे लेकिन न होने पर वह निर्दलीय उतर पड़े लेकिन वह अब भाजपा को जिताने में जुटे हैं।
भाजपा छोड़कर सपा में शामिल स्वामी प्रसाद मौर्य को अखिलेश यादव ने फाजिलनगर सीट पर प्रत्याशी बना दिया लेकिन इलियास अंसारी ने बगावत कर दी और बसपा के जरिए तीखे तेवर दिखा रहे हैं।
ललितपुर सीट व महरानीपुर से टिकट न मिलने से क्षुब्ध सपा के बागी हाथी पर सवार हो गए। सपा के कई बार के विधायक नरेंद्र सिंह यादव ने बागी तेवर दिखाते हुए इस बार फर्रुखाबाद की अमृतपुर सीट से निर्दलीय उतर पड़े। यहां भी वोट पड़ चुके हैं। चुनाव बाद पता चलेगा कि इन तीनों सीटों पर बगावत से किसको फायदा नुकसान हुआ। मड़ियांहू में सपा से टिकट न मिलने पर श्रद्धा यादव व टांडा में सपा के टिकट वंचित शबाना खातून दोनों बसपा प्रत्याशी हो गईं। इसी तरह बीकापुर में टिकट कटने से नाराज अनूप सिंह निर्दलीय ही मैदान में कूद पड़े।
श्रावस्ती सीट पर तैयारी कर रहे पूर्व विधायक मो. रमजान भी सपा से बगावत कर चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं। लखनऊ में बख्शी का तालाब में सपा के बागी राजेंद्र यादव व मलिहाबाद में सीएल वर्मा दोनों बड़ी शिद्दत से सपा के टिकट के लिए लगे थे लेकिन अब निर्दलीय लड़ रहे हैं।
2017 में भी खूब जीते थे बगावत कर पाला बदलने वाले
पिछले विधानसभा चुनाव में दो दर्जन नेता, सपा, बसपा व कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए और जीत गए। इनमें दारा सिंह, अजय प्रताप सिंह, महेश त्रिवेदी, राकेश राठौर, लक्ष्मी नारायण, अनिल मौर्य, रानी पक्षालिका सिंह, भगवती सागर, जितेंद्र वर्मा, श्याम प्रकाश, माधुरी वर्मा, संजय जयसवाल प्रमुख हैं। भाजपा विधायक विजय बहादुर टिकट कटने पर सपा में गए लेकिन हार गए। विजय मिश्र भी टिकट कटने पर निषाद पार्टी से लड़े और जीत कर आ गए। कौमी एकता दल छोड़कर बसपा से लड़ने वाले सिगबतुल्ला अंसारी हार गए। जबकि बसपा छोड़कर भाजपा में आने वाले कई नेता चुनाव जीत गए थे। पिछली बार सपा से बगावत करने वाले अम्बिका चौधरी व नारद राय दोनों बसपा से चुनाव लड़े थे और हार गए थे। अब यह दोनों सपा में ही हैं।