शौक होना जरूरी है?:हां लेकिन तारीफ पाने या देखादेखी में नहीं, अपनी प्रवृत्ति और रुचि के अनुसार चुनें हॉबी

  • शीर्षक रुपी सवाल का जवाब दिल से दें। यह कोई परीक्षा नहीं है, न ही प्रतियोगिता है। कोई भी जवाब ग़लत नहीं होगा। आप कुछ करते हैं, सीखते हैं या फिर ख़ाली बैठते हैं या चुपचाप आसमान को निहारते हैं- आपको अपनी प्रवृत्ति और रुचि के अनुसार चुनने की आज़ादी है। ख़ुशी के लिए अभिरुचि रखें, न कि तारीफ़ के लिए या बस देखादेखी।

शौक़ के बारे में पूछे जाने पर क्या आप संकोच में पड़ जाते हैं कि क्या कहें और क्या नहीं? क्या किसी फॉर्म में अभिरुचियों वाला कॉलम भरना आपको एक भारी-भरकम काम मालूम होता है? क्या दूसरों को बहुतेरी रचनात्मक अभिरुचियों में मसरूफ़ देखकर आपका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है? क्या आप किसी भी नई कला/विधा में सिर्फ इसलिए जुट जाते हैं कि आप भी दूसरों की तरह नज़र आएं? अगर इनमें से कोई भी सवाल आपके ज़ेहन को परेशान करता है, तो ज़रा ठहर जाइए। एक लम्बी सांस लीजिए और सोचिए कि आख़िर सचमुच आपकी कोई हॉबी है या नहीं।

सबसे पहले यह समझा जाना ज़रूरी है कि हॉबी है क्या। दरअसल हॉबी, शौक़ या अभिरुचि उसे कहा जाना चाहिए, जिसे करने के लिए आप इंतज़ार करें, या जो करना आपको संतुष्टि से भर जाता हो। फोन स्क्रॉल करना, वीडियो गेम्स खेलना या इंटरनेट पर ब्राउज़ करते रहना पास टाइम या इंट्रेस्ट हो सकता है, हॉबी नहीं।

नहीं डालें ख़ुद पर बोझ

अधिकतर लोग कोई नई भाषा सीखते हैं, चित्र बनाते हैं, पॉटरी करते हैं, नया वाद्य बजाना सीखते हैं, अथवा कुछ ऐसा करना शुरू करते हैं जिसमें उनका मन रुचता है। यह सोशल मीडिया का समय है, तो ज़ाहिर है वे इसकी तस्वीरें भी साझा करते हैं। ऐसे में वे व्यक्ति जिनके कोई शौक़ नहीं होते, वे ख़ुद में ख़ामियां तलाशने लगते हैं। निस्संदेह शौक़ रखना आपके व्यक्तित्व को नई रंगत देता है और आपकी ख़ुशी में इज़ाफ़ा करता है, लेकिन अगर आपकी कोई हॉबी ही नहीं हो तो क्या करें? कैसे ख़ुद को ख़ुश रखें?

मनोवैज्ञानिक मत है कि जिनकी कोई अभिरुचि नहीं होती, वे ख़ुद पर बेहतर होने का बोझ डालने लगते हैं। ऐसा नहीं करें। ख़ुद को समझने की कोशिश करें। हर किसी की शख़्सियत अलग होती है। किसी को देखकर उस जैसा बनने के फेर में न उलझें। अपने व्यक्तित्व को समझें और देखें कि वास्तव में आपको क्या करना संतोष देता है।

हर किसी के लिए ख़ुशी का पैमाना अलग होता और वजह भी। आपकी ख़ुशी का ज़रिया ख़ुद आपके अलावा कौन खंगाल सकता है भला! उदाहरण के लिए, किसी को मैराथन में दौड़ने में मज़ा आता है, किसी को बेकिंग में रस मिलता है, कोई पहाड़ चढ़ने में आनंद महसूस करता है, तो मुमकिन है कि किसी को महज़ क़ुदरत को निहारने, अकेले बैठने या किसी क़रीबी दोस्त के साथ बतियाने में ही रस मिल जाता हो। मनोवैज्ञानिक शोध के परिणाम बताते हैं कि हॉबीज़ आपकी ख़ुशी के स्तर को बढ़ाने में निस्संदेह मदद करती हैं, लेकिन ऐसा करके ही आप दिलचस्प, ख़ुश और संतुष्ट नज़र आएंगे, यह सच नहीं है।

आत्मविश्वास पर आंच न आए

सम्भव है कि आपके इर्द-गिर्द ऐसे प्रश्न मंडराते हों- क्या तुम बाहर घूमने नहीं जाते? क्या तुम्हारा कोई दोस्त नहीं है? तुममें कुछ नया करने की इच्छा क्यों नहीं है? तुम कुछ नया शुरू तो करते हो, लेकिन लम्बे वक़्त तक कहीं मन क्यों नहीं लगा पाते? अव्वल, इन प्रश्नों से घबराएं नहीं। आपका व्यक्तित्व दूसरों की सराहना का मोहताज नहीं है। दूसरों के बजाय यह प्रश्न आप स्वयं से करेंगे तो बेहतर और सच्चे जवाब मिलेंगे।

अपनी गति से ही चलें

यदि आप किसी की हॉबी देखकर यह महसूस करते हैं कि आपको भी यह करना चाहिए, तो इसे धीरे-धीरे करना शुरू करें और इत्मीनान से यह देखें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। जो भी करें, अपनी रफ़्तार से करें। ध्यान रखें कि यह आप अपनी ख़ुशी के लिए कर रहे हैं, किसी प्रतियोगिता में जीतने के लिए नहीं। उदाहरण के लिए, अगर आप सोचते हैं कि मैं सौ फ़ीसदी कोशिश करूं और फिर देखूं कि मुझे कैसा लगता है, तो सकारात्मक है। दूसरी ओर, यदि आप यह सोचते हैं कि हर कोई ऐसा कर रहा है, तो मुझे भी करना ही चाहिए अन्यथा मैं आलसी और बोझिल दिखूंगा/दिखूंगी, तो यह ग़लत है। ‘मुझे करना चाहिए’ और ‘मुझे करना ही चाहिए’ में बहुत फ़र्क है।

आलस्य या बहाना तो नहीं

यह भी ग़ौर करें कि किसी नई अभिरुचि से आपके कतराने का कारण कहीं आपका आलस्य या लापरवाही भरा व्यवहार तो नहीं है। सम्भव है कि आप कुछ नया करना तो चाहते हैं, लेकिन ख़ुद ही कुछ बहाने बनाकर पीछे हट जाते हैं। स्वयं के प्रति ईमानदार और पारदर्शी व्यवहार रखें। यदि आलस्य आपको कुछ नया आज़माने से रोक रहा है, तो एक बार ख़ुद अपनी पीठ थपथपाइए और आगे बढ़िए।

अभिरुचि बने आपका दर्पण

कोई भी व्यक्ति फ़ुरसत में क्या करता है, या कहें उसकी हॉबीज़ क्या हैं, यह उसके व्यक्तित्व के विषय में बहुत कुछ अभिव्यक्त करता है। आप कोई भी शौक़ रखें, किसी भी अभिरुचि को वक़्त दें, लेकिन अपने प्रति ईमानदारी बरतें। जो भी करें, ख़ुद के इत्मीनान और ख़ुशी के लिए करें। इसलिए नहीं कि ऐसा करने या दिखने से समाज में आपको ज़्यादा प्रशंसा मिलेगी। इसलिए ऐसी अभिरुचि को समय दें, जो वाक़ई आपके व्यक्तित्व का आईना हो।

सब्र का फल मीठा होता है

एक तथ्य यह भी है कि किसी नई हॉबी को शुरू करना क़तई आसान नहीं होता। कुछ भी नया सीखना चुनौतियों से भरा होता है। आप बार-बार ग़लतियां करते हैं, झुंझलाते हैं, हिचकते हैं, डरते हैं और फिर कहीं जाकर नया सीख पाते हैं। सोचिए, कितने अभ्यास के बाद बनती है कोई नई धुन। कितनी मर्तबा लड़खड़ाने-गिरने के बाद पहाड़ पर चढ़ना सीख पाते हैं आप। कोई नई भाषा सीखते हुए कितनी ही बार ज़ुबां फिसलती है। अमूमन इन लड़खड़ाहटों, शंकाओं और ग़लतियों से घबराकर आप पीछे हट जाते हैं या शुरू ही नहीं करते।

किसी नई हॉबी को शुरू करने के लिए बहुत सब्र की ज़रूरत पड़ती है। ऐसी समय सीमाएं या लक्ष्य नहीं रखें, जिन्हें पूरा करना बहुत मुश्किल हो, अन्यथा आप डेडलाइंस के फेर में उलझ जाएंगे और इस सीखने की समूची यात्रा का आनंद नहीं उठा पाएंगे, जबकि मक़सद तो वही है। सीखने की जल्दबाज़ी नहीं करें, ख़ुद से झूठी उम्मीदें मत पालें। सब्र से सीखें और आनंद लें।

ख़ाली रहने का आनंद…

जो भी हो, आख़िर में यह मायने रखता है कि आप ख़ुद को ‘दिलचस्प’ दिखाने के भार से आज़ाद कर दें। तयशुदा हॉबी न होने के भी कई फ़ायदे हैं, उन पर ग़ौर करें। सोचिए, ना आप पर ख़ाली दिनों में कुछ कर दिखाने का बोझ है, ना ख़ुद को साबित करने की ज़रूरत है और ना ही वक़्त की तय पाबंदियों में कुछ सीखने की अनिवार्यता है। आप जब चाहें, एक से दूसरी अभिरुचि में ग़ोते लगा सकते हैं। कुछ बिल्कुल रचनात्मक, नया अथवा अनोखा सीख सकते हैं, जो अमूमन लोग नहीं सीखते। चूंकि आख़िरकार यह कोई दौड़ नहीं है, जहां आपको जीतना है या किसी से आगे निकलना है, बल्कि यह तो ख़ालिस ख़ुशी और कोरे आनंद की बात है। जहां आनंद महसूस हो, वहीं आगे बढ़ जाएं या ना मन हो तो रुके रहें। सो, अगली दफ़ा कोई पूछे कि आप फ़ुरसत में क्या करते हैं, तो बेझिझक कहिएगा, आप ख़ाली वक़्त में ख़ाली ही रहते हैं।

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