देश में हो स्याही का उत्पादन
स्विटजरलैंड से आयात की जाती है स्याही
भारत के नोट में इस्तेमाल होने वाली अधिकांश स्याही स्विटजरलैंड की कंपनी एसआइसीपीए से आयात की जाती है। नोट के मुद्रण में इंटैगलियो, फ्लूरोसेंस और आप्टिकल वेरिएबल इंक का इस्तेमाल होता है।
…ताकि नकल ना कर सके कोई
आयात होने वाली स्याही के कंपोजिशन में हर बार बदलाव कराया जाता है ताकि कोई और देश नकल नहीं कर सके। चीन और पाकिस्तान से व्यापारिक संबंध रखने वाली कंपनी से स्याही आयात नहीं की जाती है। कंपनी को यह भी घोषित करना पड़ता है कि उनके किसी कर्मचारी ने पाकिस्तान या चीन में काम नहीं किया है।
इन स्याहियों का होता है इस्तेमाल
इंटैगलियो इंक: इसका इस्तेमाल नोट पर दिखने वाली महात्मा गांधी की तस्वीर छापने में किया जाता है।
फ्लूरोसेंस इंक : नोट के नंबर पैनल की छपाई के लिए इस इंक का उपयोग होता है।
आप्टिकल वेरिएबल इंक: नोट की नकल न हो पाए इसलिए इस इंक का इस्तेमाल होता है।
घरेलू स्याही चार से पांच गुना सस्ती
2015 के अप्रैल महीने में रिजर्व बैंक के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोट छपाई में 100 प्रतिशत घरेलू पेपर और स्याही के इस्तेमाल की बात कही थी। उसके बाद से नोट छापने वाली स्याही के घरेलू उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। घरेलू स्याही की कीमत आयातित स्याही की कीमत के मुकाबले चार से पाचं गुना कम होती है।
भारत के नोट में लगने वाला अधिकतर पेपर जर्मनी, जापान और ब्रिटेन से आयात किया जाता है। रिजर्व बैंक अधिकारियों के अनुसार 80 प्रतिशत नोट विदेशी कागज पर छपते हैं। सूचना के अधिकार के तहत पता चला है कि पांच रुपये के नोट में 50 पैसे, 10 रुपये के नोट में 0.96 पैसे, 50 रुपये के नोट में 1.81 रुपये और 100 रुपये के नोट में 1.79 रुपये की लागत आती है।