कैथल जिले के गांव दुसेरपुर में लोग 160 साल से होली नहीं मनाते हैं। गांव में त्योहार न मनाने का कारण होली के दिन एक साधु का श्राप है। लोगों के मुताबिक होली मनाने से गांव में किसी अनहोनी आशंका है।
160 साल पहले दिए साधु के श्राप से आशंकित ग्रामीण आज भी होली का त्योहार मनाने से बचते हैं। माफी पर श्राप से मुक्ति का मार्ग साधु ने बताया था और कहा था कि होली के दिन गांव में कोई गाय बछड़ा दे या किसी परिवार में लड़का पैदा हो तो अनहोनी का भय खत्म हो जाएगा। पर अब तक होली के दिन न तो किसी गाय ने बछड़ा जन्मा और न ही किसी परिवार में बेटा हुआ।
मांग पूरी नहीं हुई तो बाबा ने ली थी समाधि
साधु के श्राप को लेकर ग्रामीणों में वैसे तो कई तरह की किंवदंतियां हैं। गांव की सीमा रानी, रमेश चंद्र शास्त्री, हुक्म चंद, मामू राम, रमेश शर्मा के मुताबिक 160 साल पहले गांव में स्नेहीराम नाम का साधु रहता था।उसका कद काफी छोटा था। साधु स्नेहीराम ने होली के दिन गांववासियों के सामने कोई मांग रखी थी, उसे ग्रामीण पूरा नहीं कर पाए थे। मांग पूरी न होने से गुस्साए बाबा स्नेहीराम ने होली के दिन समाधि ले ली थी।
साध स्नेहीराम की समाधि।
बच्चों की शरारत पड़ी भारी
प्रचलित है कि घटना के दिन गांव में होली के उल्लास का माहौल था। लोगों ने मिलकर होलिका दहन के लिए सूखी लकड़ियां, उपले और अन्य समान एक जगह इकट्ठा कर रखा था। होलिका दहन के तय समय से पहले गांव के ही कुछ युवाओं को शरारत सूझी और वे समय से पहले ही होलिका दहन करने लगे।
युवाओं को ऐसा करते देख वहां मौजूद बाबा रामस्नेही ने उन्हें रोकना चाहा। युवकों ने बाबा के छोटे कद का मजाक उड़ाते हुए समय से पहले ही होलिका दहन कर दिया। इसके बाद बाबा को गुस्सा आया और उन्होंने जलती होली में छलांग लगा दी। तभी होलिका में जलते-जलते बाबा ने ग्रामीणों को श्राप भी दे दिया। बाबा ने श्राप देते हुए कहा कि आज के बाद इस गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाएगा। अगर किसी ने होली का पर्व मनाने की हिम्मत की तो उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
श्राप से निजात के दो मार्ग
उस घटना के बाद से आज तक गांव में कोई भी होली का त्योहार नहीं मनाता। बताया जाता है कि लोगों ने बाबा से गलती के लिए माफी भी मांगी थी। इसके बाद बाबा ने गांव वालों को श्राप से मुक्त होने का वरदान देते हुए कहा था कि अगर होली के दिन किसी भी ग्रामीण की गाय को बछड़ा या उसी दिन गांव की किसी को लकड़ा पैदा होता है तो श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। पिछले 160 वर्षों में होली के दिन गांव में न किसी गाय को बछड़ा पैदा हुआ और न ही किसी महिला को लड़का पैदा हुआ।
समाधि पर करते हैं पूजा अर्चना
160 साल का लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी आज तक गांव में होली का पर्व नहीं मनाया गया। स्थानीय लोगों ने बताया कि घटना के बाद उसी जगह पर बाबा की समाधि बना दी गई। लोगों ने उसकी पूजा करनी शुरू कर दी। बुजुर्गों की बताई रीत का पालन करते हुए जहां कुछ ग्रामीण आज भी मीठी रोटी बनाकर बाबा स्नेहीराम की समाधि की पूजा करते हैं। वहीं कुछ लोग बाबा की याद में केवल एक दीपक जलाते हैं।
इसके चलते अब जब भी गांव में कोई शुभ कार्य होता है तो ग्रामीण सबसे पहले बाबा की समाधि पर माथा टेकते हैं और खुशहाली की दुआ मांगते हैं। साथ ही श्राप मुक्ति की कामना करते हैं।