यमुनानगर : प्रापर्टी टैक्स के बड़े बकायादारों पर अब निगम प्रशासन की नजर है। माडल टाउन स्थित व्यवसायिक प्रतिष्ठानों सहित 80 भवनों को जल्द सील किया जाएगा। इसके लिए नोटिस जारी कर दिए गए हैं। इन पर करीब चार करोड़ रुपये बकाया है। इनमें कई बड़ी फैक्ट्रियां भी शामिल हैं। गत दिनों निगम की ओर से जगाधरी क्षेत्र के बड़े प्रतिष्ठानों पर कार्रवाई की थी। बता दें कि वित्त वर्ष में नगर निगम लगभग 15 करोड़ 92 लाख रुपये प्रापर्टी टैक्स के रूप में ले पाया है। जबकि बीत वर्ष करीब 15 करोड़ रुपये की रिकवरी हो पाई थी। इस बार 92 लाख रुपये की रिकवरी अधिक हुई है।
ऐसे बकायादार प्रापर्टी मालिकों की संख्या भी कम नहीं है जो सीलिग की कार्रवाई से बचते हुए पहले ही प्रापर्टी टैक्स जमा करवा रहे हैं। गत माह 51 दुकानों की सीलिग के लिए आर्डर मिले थे। जिसके बाद निगम की टीम ने कार्रवाई शुरू कर दी। 24 दुकानों को ही सील किया गया था जबकि नोटिस मिलने के बाद 44 दुकानदारों ने टैक्स जमा करवा दिया। इन्होंने करीब दो करोड़ रुपये टैक्स जमा करवाया। इनमें से सात दुकानें अभी सील हैं। पेट्रोल पंपों के टैक्स पर नहीं निर्णय :
निगम एरिया के 25 पेट्रोल पंपों के प्रापर्टी टैक्स के मामले में अभी कोई निर्णय नहीं हो पाया है। इन पर कई करोड़ रुपये बकाया है। दरअसल, पंप मालिक खाली जगह को छोड़कर कंस्ट्रक्शन की गई साइट जिसमें भवन व कैनोपी शामिल है पर टैक्स लगाने की बात कह रहे हैं जबकि नगर निगम की ओर से पंप के पूरे एरिया का टैक्स बनाकर बिल भेज दिए। जिसके चलते बिल की राशि में कई गुणा अंतर आ गया। दूसरा, पेट्रोल पंप मालिकों के मुताबिक निगम अधिकारियों ने बिल में दस वर्ष पुराना टैक्स भी लगाकर भेज दिया जोकि अधिकतर पेट्रोल पुराने नियम के हिसाब से अदा कर चुके हैं। इस अवधि का टैक्स बनाकर भी भेजा जा रहा है। हालांकि बिल मिलने के बाद पंप मालिक कोर्ट में चले गए और स्टे भी ले आए हैं। इस संबंध में निगम अधिकारियों शहरी स्थानीय निकाय विभाग(यूएलबी ) से मार्गदर्शन के लिए पत्र लिखा है।
सरकारी विभागों पर भी हो कार्रवाई :
विभिन्न सरकारी विभागों के भवनों पर 15 करोड़ से अधिक प्रापर्टी टैक्स बकाया है। इनसे रिकवरी के लिए निगम की कार्रवाई केवल सरकार को पत्र लिखे जाने तक सिमट रही है। हाउस की बैठक में पार्षद यह मुद्दा उठा चुके हैं। वार्ड आठ से पार्षद विनोद मरवाह का कहना है कि प्रापर्टी टैक्स समय पर अदा करना जरूरी है। क्योंकि टैक्स के रूप में आए पैसे से ही निगम के खर्चे चलते हैं। विकास कार्यों को गति मिलती है, लेकिन निजी प्रतिष्ठानों के साथ-साथ सरकारी भवनों पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए।