डोर -टू-डोर कचरा कलेक्शन के टेंडर पर पार्षदों का विरोध, कर रहे गुपचुप बैठकें

यमुनानगर : निगम एरिया में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन व प्रबंधन के लिए लगाए गए टेंडर के खिलाफ पार्षद लामबंद होने शुरू हो गए हैं। विपक्ष तो शुरू से ही विरोध में था, लेकिन अब सत्तापक्ष के कुछ पार्षदों की गुपचुप बैठकों का दौर शुरू हो गया है। आरोप है कि हाउस की बैठक में इस टेंडर का विरोध किया गया था। बावजूद इसके टेंडर की प्रक्रिया जारी है। पार्षदों का कहना है कि यह टेंडर जोन वाइज लगाए जाएं या फिर छोटे टेंडर लगाएं ताकि सफाई व्यवस्था बेहतर हो सके। भाजपा पार्षद राम आसरा ने इंटरनेट मीडिया पर टेंडर को लेकर अधिकारियों की मंशा पर सवाल उठाए हैं। उनके अलावा अन्य कई पार्षद भी इस टेंडर के पक्ष में नहीं हैं।

हाउस की बैठक में उठ चुका मुद्दा :

नगर निगम के 22 वार्डों से कचरा उठान व प्रबंधन का मुद्दा हाउस की बैठक में भी उठ चुका है। सर्व सम्मति से यह प्रस्ताव भी पास हुआ था कि ठेका प्रथा बंद करके निगम खुद सफाई का काम संभालेगा। कचरा उठान के टेंडर पर भी पार्षदों ने सवाल उठाए थे। पार्षदों का कहना था कि पहले ठेका 18 करोड़ में था। अब ऐसा क्या हो गया कि अनुमानित लागत करीब 26 करोड़ रुपये करनी पड़ी है। हालांकि पहले दो जोन में बांटकर टेंडर लगाया गया था, लेकिन इस बार सिगल टेंडर है।

मंत्री व विधायक के पास पहुंचा मामला :

कचरा उठान के लिए लगाए गए टेंडर के मुद्दे पर भाजपा के कुछ पार्षदों शिक्षामंत्री कंवरपाल, विधायक घनश्याम दास अरोड़ा व मेयर मदन चौहान के समक्ष भी रख चुके हैं। मांग यही है कि इस टेंडर को कम से कम पांच जोन में बांटकर किया जाए। इसके सकारात्मक परिणाम आएंगे। एजेंसियों में प्रतिस्पर्धा होगी और काम बेहतर होगा।

हो रहा घालमेल :

वार्ड नंबर से पार्षद राम आसरा का कहना है कि कचरा उठान में बड़ा घालमेल है। सभी पार्षद यह मांग उठा चुके हैं कि सिगल टेंडर न लगाया जाए। यदि निगम एरिया को जोन में बांटकर टेंडर लगाया जाएगा तो एजेंसी के पास संसाधनों की कमी भी नहीं रहेगी। दूसरा, सेक्टर-17 में कचरा उठान का काम वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से किया जा रहा है। यहां निगम या एजेंसी कचरा उठान का काम नहीं करते, लेकिन एरिया टेंडर में शामिल है। सिगल टेंडर की मांग को लेकर शिक्षामंत्री कंवर पाल व मेयर मदन चौहान से की जा चुकी है। इसी प्रकार, वार्ड आठ से पार्षद विनोद मरवाह का कहना है कि टेंडर लगाने से पहले पार्षदों की राय तक नहीं ली जाती।

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